Suvichar (191)
Posted by
KAUSHALYA VAGHELA
at
Tuesday, August 31, 2010
Labels: SUVICHAR : The Good Thoughts
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3 comments:
jab dukh se hriday nirmal ho jata hai to log dukh se ghabrate kyu? yaha tak ki Mahatma Budha v dukh se dukhi hokar isse mukti pane ke sidant de dale the.
आपका सवाल बिलकुल सही है..और आपने महात्मा बुद्ध के बारे में भी बताया यह भी सही है, परन्तु हम जहाँ तक समझे है उससे कहे तो जब तक इन्शान खुद उस परिस्थिति को अनुभव नहीं करता है तब तक् वह अन्जान और अपरिचित है उस स्थिति से, लेकिन जब वह उस स्थिति में आता है तब वह उससे झूझता है और उससे बहार निकलने के उपाय करने में वह सफलता को प्राप्त कर परिपक्व हो जाता है...उसी प्रकार जैसे कि- कच्चा घड़ा टूट जाता है लेकिन वह आग में तपकर पक्का हो जाता है...
isliye dukh or sukh me sam rahna chaiye, jis trah kuch pal ke liye badal surya ko dhak deta hai, thik usi prakhar es jivan rupi naiya me bhi sukh dukh dono chalta rahta hai.
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